Monday, January 19, 2015


वह दर्द भी क्या दर्द है 
  जिसमें कोई मरहम ही न लगाये 
न जताओ वह बेकार की गम
  जिसकी कोई गहराई समझ न पाये। 

ये दिल तो ठहरी एक जँहा नाज़ुक सी
  जो शायद फूलों से मुरछा जाए 
वरना वैसे भी कौन है दुनिया में 
  जो इन्हे कभी चोट पहुँचाना चाहे। 

 बहता हुआ एक कश्ती है ज़िन्दगी तो
  जो ख़ुशी के खोंज में यूँही बहता जाये   
वह आँशु भी क्या आँशु है आँखों में 
  हर रोज जो गुमनाम छुपता जाये 
वह दर्द भी क्या दर्द है 
  जिसमे कोई मरहम न लगाये। 

1 comment:

  1. khub valo lekha hoyeche...sab vashatei kobi hoye uthcho.....avinandan....aro samridho how...pathokder ridho karo....subha kamona rakhlam...

    ReplyDelete